
जुलाई का महीना था। शाम के चार बज रहे थे। बाहर उमस थी। आसमान बादलों से तंग था। प्रेम, शिमला से देहरादून आया था। उसके लिए ये मौसम अनुकूल नहीं था, मगर उसकी परेशानी इस गर्मी को महसूस नहीं होने दे रही थी। बगल वाले घर में घिसाई का काम चल रहा था, मगर उसकी आवाज़ प्रेम के अंदर के शोर से कम थी। अब प्रेम का बार- बार फ़ोन देखना भी बंद हो गया था, क्योंकि उसे किसी के फ़ोन या मैसेज आने की उम्मीद अब न थी।
अचानक से माया कमरे में चिल्लाते हुए आई “खिड़कियां बंद करो। आपको दिखाई नहीं देता.. तेज तूफान और बारिश शुरू हो गयी है।” प्रेम अचानक से चचका (चौंका) और अब उसे कमरा दिखाई देने लगा। बारिश के कुछ छींटे उस तक भी पहुंच रहे थे। दोनों ने खिड़कियां बंद की। प्रेम ने पत्नी से झूठ कहा कि उसकी आंख लग गयी थी, इसलिए महसूस नहीं हुआ। बात चल ही रही थी कि माया का फ़ोन बजा। माया की दादी का फोन था । इससे पहले कि माया सेवा लगाती (प्रणाम करती) कि दादी ने बताया गांव में सब कह रहे है कि हमारे गांव के फगनु को कोरोना हो गया।
माया को इतना आश्चर्य नहीं हुआ मगर गांव में पहला मामला होने के कारण दादी बहुत उत्तेजित थी। माया ने समझाया कि क्या क्या सावधानियां रखनी है। फोन रखने से पहले दादी ने मन की बात पूछ ही ली कि “क्या जवाईं (दामाद) को तनख्वा मिल रही है ? ” माया ने मुस्कुराते हुए हामी भरी और दादी का चित्त भी बूझ गया। दादी और माया की बचपन से सबसे ज्यादा बनती थी। माया दादी के साथ मिलकर बाड़ी, गोल्थया,लांगड़ी ,फाड़ा, चौसा और भी गढ़वाली खाना बनाती थी।
दादी के हाथ का स्वाद अब माया के हाथों में भी आता था। ये दादी का प्यार ही था कि माया को गांव के टेलर मास्टर जी के पास ले गयी और अपने बचाये हुए पैसों से दादी ने माया की सिलाई सीखने की फीस दी । दादी के मायके का जानने वाला ही माया के लिए प्रेम का रिश्ता लाया था । जब दादी से सुना था कि शिमला के होटल में नौकरी करता है, अच्छा खासा कमाता है, तो दादी को ही लड़का सबसे पहले पसंद आया था।

जनवरी में ही शादी हुई थी और दादी ने पहले ही कह दिया था कि मेरी नतेड़ी शादी के बाद लड़के के साथ शिमला जानी चाहिए। ऐसा ही हुआ था। देहरादून में प्रेम के दोस्त किराये के कमरे में रहता था जो मार्च में होली के लिए घर गया था। प्रेम की मौसी भी देहरादून रहती थी ,मौसी काफी समय से कह रही थी कि ब्वारी(बहु) को लेकर आ कभी देहरादून । होली का समय भी था और प्रेम को भी छुट्टी मिल गयी। प्रेम और माया ने मौसी के साथ होली मनाई , कुछ और दिन रुकने का मन हुआ तो दोस्त के खाली कमरे में एक हफ्ता रुकने की सलाह हुई।दोस्त ने भी अपने मकान मालिक से बात कर ली थी।
इसी बीच कोरोना की खबरे बढ़ने लगी थी ,होटल बंद होने की सूचना प्रेम तक पहुच गयी और अब तो लॉक डाउन भी हो गया था।
समय एक महीने से ज्यादा गुजर गया था , प्रेम ने शिमला फोन किया भी तो साहब ने कहा कि होटल अभी भी बंद है ,समय बीतता गया और साहब ने फोन उठाना भी बंद कर दिया और अब तो स्विचड ऑफ आने लगा था। प्रेम के एक सहकर्मी ने प्रेम को बताया कि होटल खुले हुए तो एक महीना हो गया ,साहब ने कुछ गिने चुने लोगों को ही काम पर बुलाया है । दोस्त ने बताया कि वो शिमला छोड़ कर अपने गाँव नेपाल चला गया है।
प्रेम बेरोजगार हो गया है ये परेशानी उसे खाये जा रही थी। माया के अनुसार सब सही चल रहा था और प्रेम भी यही चाहता था कि माया को ऐसा ही लगे ,उसे खुश देखना चाहता था ।उसने सोचा था नया काम मिलते ही माया को सच बता देगा । माया प्रेम पर बहुत भरोसा करती थी ,वो माया से कहता था कि कुछ दिन बाद जायेंगे। प्रेम को घर से भी खर्चा भेजने के लिए फ़ोन आने लगे । प्रेम की ब्वे (माँ) का फोन आता था कि पक्के मकान का सिर्फ लेंटर ही पड़ा है , आगे का काम भी जल्दी हो जाये तो सही रहेगा । पिताजी जी से फोन पर सीधे बात तो नहीं होती मगर प्रेम की ब्वे से पूछते थे कि ये काम पर कब जायेगा ,क्यों नहीं जा रहा है। प्रेम भी अपनी जिम्मेदारियों को समझता था।
प्रेम ने बारिश से गीले कपड़े जैसे ही बदले माया ने बाड़ी तैयार कर ली। बारिश का मौसम , बाड़ी और चाय।
माया को पिंठाई (सगाई) के बाद ही प्रेम ने स्मार्ट फ़ोन दिलाया था । टेलरमास्टर बौडा (ताऊ) जी से सिलाई की ट्रेनिंग थोड़ी बहुत ली थी पर अब माया यू ट्यूब से नए ज़माने के स्टाइलिस लेडीज कपड़ों की सिलाई सीखने लगी थी। इतना आधुनिक तो मास्टर जी को भी नहीं आता था। शादी की तारीख नजदीक आ गयी थी ,माया ने अपने , माँ और दादी के सारे ब्लाउज, पेटीकोट खुद ही सिले थे । शादी के बाद ही माया के मायके के साथ सिलाई भी छूट गए। जब भी शिमला में प्रेम काम पर जाता था, तो माया भी अपने पुराने सिलाई के शौक को यू ट्यूब चैनल में देखा करती थी ।
शिमला में बगल में एक आंटी रहती थी जो घर में ब्यूटी पार्लर चलाती थी उनके साथ थोडा बहुत माया ने भी सीख लिया था। अब माया की यू ट्यूब पर दो क्लास चलने लगी थी ,एक सिलाई और दूसरा मेकअप । देहरादून में भले घूमने के विचार से रुके थे पर लोकडाउन और सामजिक दूरी के कारण चारदिवारी तक सीमित रह गए थे ये समय प्रेम के लिए बहुत चिंताजनक था मगर माया को अपनी सिलाई और मेकअप की वीडियो देखने के चक्कर में समय का पता ही नहीं लगा, यही कारण था कि वो प्रेम की परेशानी कभी पढ़ नहीं पायी और प्रेम को भी कोई आपत्ति नहीं थी। चाय और बाड़ी खत्म हुए ही थे कि प्रेम के देहरादून वाले दोस्त का फ़ोन आ गया कि उसका काम शुरू हो गया है अब वो देहरादून वापस आ रहा है । उसका मतलब था कि प्रेम को अब उसका कमरा छोड़ना पड़ेगा।
अब प्रेम पर शनि ( मुश्किल) आ गया। उसकी अब नौकरी नहीं है ये बताने का डर तो था ही मगर अब माया क्या कहेगी उससे इतना कुछ छुपाया। गांव जायेंगे तो ब्वे -बाबा क्या बोलेंगे और माया के मैती (मायके वाले)? शाम के 8 बज रहे थे, प्रेम का दोस्त देहरादून की तयारी के स्टेट्स वॉट्सअप में डाले जा रहा था, माया खाना बनाकर ब्राइडल मेकअप कैसे करे की वीडियो में व्यस्त थी और प्रेम सब सच बताना चाहता था। प्रेम की सांस फूल रही थी , तरह तरह के ख़याल मन में आ रहे थे, वो माया के पास पंहुचा ही कि माया की वीडियो खत्म हो गयी थी और वो एक पुरानी कॉपी के पीछे पैसों का कुछ हिसाब लिख रही थी।
प्रेम ने जैसे ही कुछ कहना चाहा ,माया की नजर प्रेम पर पड़ी , वो पसीने से तर था। माया को ध्यान आया कि खिड़कियां बंद की थी ,खोल दूँ ! हवा आएगी। माया खिड़की खोलने लगी । माया बैठी ,प्रेम सोच ही रहा था कि किस तरीके से अपनी बात रखूं कि माया ने पूछ लिया ! हम शिमला वापस कब जायेंगे?
प्रेम का गला सूख गया ,माया का दूसरा प्रश्न – क्या हम शिमला जायेंगे?
प्रेम अकबक हो गया , उसके मुह से हाँ और ना दोनों एक साथ ही निकल रहे थे। इतने में प्रेम को एक और प्रश्न सुनाई दिया।
” क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम न जाये?”
प्रेम ने कहा- ह्म्म्म?
प्रेम यकीन नहीं कर पा रहा था ,वो यही बात दुबारा सुनना चाहता था
माया को लगा कि मैंने कोई छोटी मोटी बात नहीं की है ,प्रेम को इसकी नौकरी छोड़ने की बात शायद बुरी लग गयी होगी।
माया – अ…. म….. कुछ नहीं!
प्रेम- अरे कहो भी!
माया ने कहा – मैं कुछ करना चाहती है , मैंने सिलाई और मेकअप अच्छे से सीख लिया है। अब शिमला जैसे बड़े शहर में कौन मुझ नौसिखिया को काम देगा।
हमारे गांव में ये सुविधा है भी नहीं , मेरा काम अच्छा चलेगा ! गांव में किराया भी नहीं देना होगा , तुम भी पास के बाजार में काम ढूढ़ लेना।
अगर तुम कम भी कमाओगे तो खर्चे भी तो कम होंगे और मेरी भी कमाई होगी।
घर में मकान का काम भी लगा है , जी (सास ससुर) और घर की देख रेख भी हो जायेगी।
माया ने इतने सारे कारण गिना तो दिए और प्रेम का जवाब क्या होगा ये बात उसे थोड़ा तनाव में डाल रही थी।
प्रेम – अगर तुम्हारी ख़ुशी इसी में है तो मैं मना कैसे कर सकता हूँ।
हाँ बस शिमला में साहब को बता देता हूँ कि मैं अब काम छोड़ रहा हूँ ।
Very Nice writing work. Touching the tough aspects of lockdown affecting the common people.
Its beautiful from the beginning especially the ending with the positive note.
Good work. Keep it up. 🙂
Very good beta. Keep it up. God bless you