हाय
जब से ये मोबाइल फोन आये तब से पत्रों का चलन मानों खत्म सा हो गया है। लेकिन मेरी बड़ी दिली इच्छा थी कि पत्र लिखूं, यूँ कहो कि प्रेम पत्र। यह पढ़कर तुम्हें हंसी तो ज़रूर आएगी, पर ठीक है हमको तो प्रेम पत्र लिखना है मतलब लिखना है। देखो जो-जो लिख रहे है उसका जिक्र हमने कितनी ही बार तुमसे किया होगा। लेकिन तुम हमारी बातों को या तो नकार देते हो, अनसुना कर देते हो या फिर ऐसे जताते हो जैसे हम दोनों अजनबी हैं, इससे ज्यादा कुछ नहीं। हम तुमसे शिकायत कर रहे हैं तुम्हें ये समझना है तो तुम बेशक समझ सकते हो क्योंकि यह सब हम तुमसे ही कह सकते हैं,और किसी से तो नहीं।
हमको नहीं मालुम कि हमारे बीच ऐसा रिश्ता है चाहे इसको तुम अच्छे दोस्त का नाम दे दो या अच्छे दोस्त से बढ़कर है भी बोल सकते हो। हम लोग रिलेशन में नहीं ,हम लोग गर्लफ्रेंड ब्यावफ्रेंड नहीं (इस चीज़ पर हमारा भी बिलीव नहीं) मगर इन सबमें ना होने के बावजूद तुम याद रहते हो हर पल हर क्षण, दिल के एक कोने में। जहां सिर्फ़ तुम ही तुम मौजूद रहते हो। जिसमें आजकल पता नहीं खामोशी की दीमक लग गई है। जो अपनेपन का नहीं बल्कि अजनबीपन का अहसास करवाती है। जिससे हम सहम से जाते है, मगर ये सब तुमसे कह देना और तुम्हारा ये बोलना कि तुम मुझे बदलो नहीं, जैसा हूँ वैसा ही रहने दो, सुनकर अजीब लगता है। मेरा तुमसे बोलने से मतलब ये नहीं रहता कि तुम बदल जाओ यार तुम जैसे हो वैसे ही रहो, पर कहीं ना कहीं तुम्हारा व्यवहार मेरे प्रति बदला है,रियली आई डोंट नो ह्वाय!
हमको सब याद आता है कि हम लोग कैसे मिले, किन बातों से हमारी बात शुरू हुई, ट्रिप पर साथ रहना, जब याद करो तुम्हें तुरंत तुम्हारा सामने आ जाना, साथ में खाना खाना, तुम्हारा मेरे बालों में चंपी करना, कितनी सारी सैल्फी पिक्स, और याद है तुम्हें हमको दूध पीना था तुम तुरंत कहीं से दूध लेकर आ गये थे, कितना कुछ था हमारे बीच! लेकिन अचानक से अजनबी टाईप से बात करना, जितना पूछो उतना ही उत्तर देना, वरना उस टाइम तुम बात ना करो पर टीज़िंग तो करते ही थे आई मिस दोज़ डेज़ यार और सबसे ज्यादा तुम्हारा प्यार से देखना फिर आँखें बंद कर लेना,
क्या दूर चले जाने से दूरियां बढ़ जाती है? या दूर होने से दिमाग ही काम करना बंद कर देता है?
हम इतने दिन साथ रहे गुस्सा, लड़ाई,हक जताना, एक दूसरे का ख्याल रखना, ध्यान देना खाना खाया कि नहीं, कपड़े कहां है मेरे ढूंढ के दो, सबकुछ याद आता है
। लगता है हम बहते जा रहे नदी की तरह ये नदी कहां जायेग। नहीं मालुम इसका परिणाम क्या होगा। बस हम बहते जा रहे है और तुम चुपचाप किनारा पकड़ लिए हो। हम लोग ना एक दूसरे से बंधे है, और ना ही खुले है, साथ है भी और साथ नहीं भी ना जाने इसको आखिर क्या कहेंगे
अट्रैक्शन होते होते कहीं कुछ….बस
शिकायत की पुड़िया
Bahut badhiya
Bahut badhiya
Like!! Thank you for publishing this awesome article.