
यह दिन स्त्री शिक्षा के रूप में याद किया जाता है। सावित्री बाई फुले मूलतः महाराष्ट्र की थी। बंगाल के बाद महाराष्ट्र ही वह राज्य था जहाँ स्त्री शिक्षा और उसके अधिकारों की लड़ाई पुरजोर तरीके से लड़ी जाती है। सावित्रीबाई फुले एक शिक्षिका के साथ-साथ समाज सुधारक भी है और व्यक्तिगत स्तर पर कवयित्री रही। उनकी कविताओं का पहला संग्रह उनकी तेईस की उम्र में 1854 छपी थी और दूसरा संग्रह 1891में ‘बावन्नकशी सुबोधरत्नाकर के रूप में आता है। उनकी कविताओं का संकलन मराठी से हिंदी में भी अनुदित है। सावित्री बाई फुले ऐसी शख्स थी जिन्होंने समाज द्वारा लड़कियों की शिक्षा के विरोध के बावजूद उन्हें शिक्षित करने का प्रण लिया और अपने मार्ग में आने वाली तमाम रुकावटों सामाजिक अपमान से आगे बढ़कर स्त्री शिक्षा को मजबूत किया।

उन्होंने उस समय की मौजूदा लैंगिक और जाति विभेद की मानसिकता का पुरजोर विरोध किया। वह अपनी कविता में लिखती भी हैं कि “चलों, चलें पाठशाला हमें है पढना, नहीं अब वक्त गँवाना/ ज्ञान-विद्या प्राप्त करें, चलो हम संकल्प करें/ अज्ञानता और गरीबी की गुलामीगिरी चलो, ”तोड़ डालें/ सदियों का लाचारी भरा जीवन चलो, फेंक दें।” सावित्री बाई फुले’ 1848 में वे पुणे के बुधवारा पेठ में आम के वृक्ष के नीचे पहला बालिका विद्यालय खोलती हैं। इसी तरह 1851 में रास्तापेठ, 1852 बताल पेठ में दो और बालिका विद्यालय खोलते हुए स्त्री शिक्षा को आगे बढानें का काम करती हैं। सावित्रीबाई फुले का लड़कियों के प्रति शिक्षा के संकल्प रास्ता बहुत सरल नहीं था। उन्हें अपने ही समाज के रुढ़िवादी लोगों का विरोध सहना पड़ता है।
उनका पुरजोर विरोध होता है उन्हें विद्यालय जाते समय अंडो, कीचड़, टमाटर, पत्थर से मारा जाता था ताकि वह लड़कियों को पढ़ाना बंद कर दे। परंतु ऐसा होता नहीं है समाज जितना उनका विरोध करता वह उतनी ही सशक्त होकर आगे बढ़ती जाती और उनका शिक्षा का यह संकल्प प्रौढ़ महिलाओं की शिक्षा के लिए भी पाठशाला खोलता हुआ आगे बढ़ता है। इस तरह ‘1849 में पूना में ही उस्मान शेख के घर मुस्लिम स्त्रियों व बच्चों के लिए प्रौढ़ शिक्षा केंद्र खुलता है।’सावित्रीबाई फुले का शिक्षा में योगदान यहीं समाप्त नहीं होता बल्कि 1852 में बाल विवाह, विधवा, परित्यक्ता, यौन शोषण से गर्भवती हुई स्त्रियों की दशा को सुधारने के लिए ‘महिला मंडल’ का गठन करती हैं।
स्वाभिमान से जीने के लिए
पढ़ाई करो पाठशाला की
इंसानों का सच्चा गहना शिक्षा है
चलो, पाठशाला जाओ