प्रज्ञा का अर्थ बुद्धि और समझ से है। लेकिन राजनीति में प्रज्ञा ने अपना अर्थ खो दिया है। ये समझदारी से नासमझी में तब्दील हो गई है। पुरानी कहावत है कि राजनीति या तो प्रज्ञा को मार देती है या उस पर नासमझी का पर्दा डाल देती है। इनदिनों राजनीति में भोपाल से भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर का ये ही रूप देखने को मिल रहा है। भारतीय जनता पार्टी, प्रज्ञा ठाकुर के बयानों से लाख दूरी बना ले, लेकिन समाज का एक पूरा तबका है जो उनकी बातों को दबे जुबां समर्थन देते आया है।
ये तबका कभी भी नाथूराम गोडसे को गांधी का हत्यारा मानने को तैयार नहीं हुआ। जबकि ये पूरा तबका जिन विचारों को मानने का दंभ भरते आया है उस विचारधारा ने कभी भी नाथूराम गोडसे को न ही महिमा मंडित किया और न ही देशभक्त बताया। फिर क्यों प्रज्ञा ठाकुर हर बार गोडसे को देशभक्त बता देती हैं। यह देश गांधी का देश है जिसके मूल में ही अहिंसा है फिर क्यों प्रज्ञा ठाकुर, ऐसे बयानबाजी से पूरे हिंदुत्व की छवि को धूमिल कर रही हैं।
क्या प्रज्ञा ठाकुर के बयानों से यह तथ्य बदल जाएगा कि नाथूराम गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली में महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी? नाथूराम गोडसे के गांधी से जो भी मतभेद रहे हों लेकिन गांधी की हत्या उन मतभेदों को जायज नहीं ठहरा सकती। नाथूराम गोडसे कभी भी इस देश के नायक नहीं हो सकते। फिर क्या वजह है कि पार्टी लाइन से बाहर जानकर प्रज्ञा ठाकुर हर बार नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताती आई हैं।
जबकि उनके बयानों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक यह कह चुके हैं कि वो कभी प्रज्ञा ठाकुर को दिल से माफ नहीं कर पाएंगे। इसके बाद भी बुधवार को साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने लोकसभा में एसपीजी संशोधन विधेयक पर चर्चा के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को ‘देशभक्त’ बता दिया। उन्होंने जिस साहस से लोकसभा में कहा कि ‘देशभक्तों का उदाहरण मत दीजिए’ ये इतना बताने के लिए काफी है कि गांधी के देश में प्रज्ञा ठाकुर, जो कि अब राजनीति में हैं, गांधी के विचारों को तो दूर, गांधी के अहिंसा के सिद्धांत के भी खिलाफ खड़ी दिखती हैं।
महात्मा गांधी के विचारों और सिद्धांतों की आलोचना हो सकती है। महात्मा गांधी से सहमति और असहमति जताई जा सकती है। लेकिन ये असहमतियां महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को देशभक्त सिद्ध नहीं कर सकती हैं। हिंदू धर्म का मूल सिद्धांत ही अहिंसा परमो धर्म: है। ऐसे में एक हिंसक और जघन्य कृत्य करने वाले को देशभक्ति बताना, क्या गांधी की हत्या को जायज ठहराना नहीं है? हालांकि, भाजपा ने प्रज्ञा ठाकुर के बयान की घोर निंदा करते हुए उन्हें रक्षा समिति से हटा दिया है। उनके भाजपा संसदीय दल की बैठक में भी जाने से रोक लगा दी गई है।
लेकिन क्या यह रोक काफी है? क्योंकि यह कहा नहीं जा सकता कि प्रज्ञा ठाकुर आने वाले दिनों में अपने उलझूलुल बयानों से भाजपा को नुकसान न पहुंचाए। यह पहली बार नहीं है जब प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे को देशभक्त बताया है।
इससे पहले भी वो नाथूराम गोडसे को देशभक्त बता चुकी हैं। उस वक्त भी काफी विवाद खड़ा हुआ था और इसके बाद भी पार्टी ने उन्हें बाहर नहीं निकाला और एक बार फिर वो भाजपा के लिए दुनियाभर में किरकिरी बनी हैं। खुद रक्षा मंत्री राजनाथ सिंहगोडसे को देशभक्त मानने की सोच को निंदनीय बता चुके हैं।
साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के बयानों से न सिर्फ भारतीय जनता पार्टी को नुकसान पहुंच रहा है बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सामाजिक समन्वय के सिद्धांत को झटका लग रहा है। प्रज्ञा ठाकुर की छवि एक हिंदुत्ववादी नेता के तौर पर है और हिंदुत्व का विचार गांधी के हत्यारे को कभी भी देशभक्त बताने के पक्ष में नहीं रहा। प्रज्ञा ठाकुर ने जो भी भोगा वो उनकी अपनी पीड़ा है। उसका फैसला अदालत में होगा, केस चल भी रहा है। कोर्ट ने उन्हें जमानत दी, उन्होंने चुनाव लड़ा और भोपाल की जनता ने उन्हें चुनकर संसद भेजा लेकिन क्या इसलिए कि वो लोकतंत्र की सबसे बड़ी अदालत लोकसभा में गांधी के हत्यारे गोडसे को देशभक्त बताए?
प्रज्ञा ठाकुर विक्टिम कार्ड खेलकर, गांधी के हत्यारे गोडसे को देशभक्त बताकर क्या साबित करना चाहती हैं।
ललित फुलारा